Monday, 29 October 2012

मौसी से सेक्स ज्ञान-2 - Mosi Se Sex Gyan 2


मौसी से सेक्स ज्ञान-2
प्रेषक : विजयपाल माही

मौसी अभी यही समझ रहीं थीं कि मैं उत्तेजित होकर नींद में ही झड़ा हूँ। उन्होंने मेरा लण्ड कस कर पकड़े रखा जब तक मैं पूरा झड़ नहीं गया।

उनका हाथ चड्डी के ऊपर से गीला हो चुका था, मैंने अपनी जांघ पर उनकी चूत का गीलापन साफ़ महसूस किया वो भी झड़ चुकी थी। अपने हाथ में लगे मेरे लण्ड के पानी को चाट रही थी वो ! चुद तो नहीं सकी थी पर एक युवा मर्द के संपूर्ण अंगों से खेलने का सुख शायद उनको बहुत समय बाद मिला था।

वो बिस्तर पर मेरा किसी औरत के स्पर्श का पहला अनुभव था और औरत के जिस्म का सही पहला सुख...

मैं मौसी को उस रात चोद तो न सका, शायद अनाड़ीपन और शर्म के कारण !

पर अपने कसरती जिस्म का जो चस्का मैंने मौसी जी को लगा दिया था उससे मुझे पता था कि आने वाली सैकड़ों रातों में वो मेरे बिस्तर पर खुद आने वाली थी और मैंने भी सोच लिया था कि मौसी की सालों से बंजर पड़ी चूत के खेत में अपने लण्ड से न सिर्फ कस कर जुताई करनी थी बल्कि खाद पानी से उसे फिर से हरा भरा करना था।

मौसी को कस कर पेलने का अरमान दिल में लिए मैं गीली चड्डी में चिपचिपेपन को बर्दाश्त करता हुआ सो गया।

अगले दिन सुबह मौसी मेरे साथ इस तरह सामान्य थी जैसी रात में कुछ हुआ ही न हो।

मैं शुरू में तो उनसे आँख चुरा रहा था पर उनका बर्ताव देख कर मैं भी कुछ सामान्य हो गया पर...दिमाग पर मौसी का गदराया जिस्म छाया हुआ था। जीवन में पहली बार मैंने मौसी जी को दिन के उजाले में कामवासना की नज़र से देखा था। उनके एक एक अंग की रचना को पढ़ने की कोशिश कर रहा था और उससे मिलने वाले सुख की कल्पना कर रहा था।

उनकी गोल बड़ी बड़ी मस्त चूचियाँ, उठे उठे भारी चूतड़ हिलते हुए कूल्हों से लपकती दिखती गाण्ड की मोटी दरार... आज सब अंग सेक्स को आमंत्रण दे रहे थे।

सुबह के ग्यारह बज रहे थे, पापा ऑफिस चले गए थे और मम्मी स्कूल। छोटा भाई ड्राइंग रूम में कार्टून फिल्म देख रहा था।

मैंने मौसी से कहा- मौसी, मैं बाथरूम में नहाने जा रहा हूँ ज़रा आप आकर मेरी पीठ मल देंगी क्या?

"हाँ हाँ ! क्यों नहीं? ... तुम चलो, मैं आती हूँ !" वो हंस कर बोली।

मैं बाथरूम में चला गया, मेरा मन मौसी के स्पर्श के विचार से खुशी से धड़क उठा। मैं सिर्फ फ्रेंची में था, पानी में भीग कर तना हुआ लण्ड बिल्कुल मूसल दिख रहा था।

मैं ऐसे बैठा था कि मौसी जी की नजर आते ही मेरे लण्ड पर पड़े !

और वैसा ही हुआ, मैंने देखा दूर से आती मौसी की नज़र जैसे ही मुझ पर पड़ी, वो मेरे लण्ड पर ही जाकर अटक गई।

"आइए.. मौसी जी... !" मैं उनकी नज़र को अनदेखा करते हुए बोला- मेरी पीठ पर अच्छे से साबुन लगा कर मल दीजिये, अपने हाथ से बढ़िया से नहीं हो पाता है ना..

"अरे, तुम बैठे रहो, मैं देखना कितना बढ़िया से मलती हूँ.... !" कह कर मौसी मेरी पुष्ट पीठ को मलने लगी।

मेरे लण्ड में सनसनी शुरू हो गई, खड़े लण्ड को मौसी रह-रह कर निहार लेती थी। पीठ रगड़ते हुए वह बोली- लाओ, अब जब हाथ लगाया ही है तो पूरा ठीक से रगड़ देती हूँ ! अपने पैर इधर करो ! कह कर वो मेरे सामने बैठ गई।

मैं बिल्कुल उनके सामने था, वो मेरी जांघों को साबुन लगाकर मलने लगीं, अब वे मेरे तने और फूले लण्ड को खुल कर देख सकती थी और उनका हाथ पैरों को रगड़ते रगड़ते मेरी चड्डी तक पहुँच जाता था, उनकी उंगलियाँ मेरे लण्ड को स्पर्श कर लौट जाती थी।

नहाने में इतना मज़ा पहली बार आ रहा था, उनसे लण्ड छुवाने का मेरा मकसद तो पूरा हो रहा था वो भी मेरे लण्ड को उजाले में नंगा देखने को आतुर थी।

मौसी ने पानी डाल कर कर मुझे खूब नहलाया। मैं तौलिया लपेट कर चड्डी उतारने लगा लेकिन जानबूझ कर चड्डी उतारते समय तौलिया गिरा दिया, मौसी जी सामने ही खड़ी थी। मेरा मूसल जैसा लण्ड देख कर उनके होश उड़ गए, वे आँखें फाड़ फाड़ कर मेरा विशाल लण्ड देखती रही।

मैं बोल पड़ा- ओह... वेरी सारी मौसी जी...सारी...

"अरे बस..बस.. बचपन में कई बार देखा है तुम्हें ऐसे.. शर्माने की कोई बात नहीं है ! जाओ बैठो, मैं नाश्ता देती हूँ।"

"आप जाइए, मैं चड्डी धोकर डाल दूँ, फिर आता हूँ.. " मैंने कहा।

मैं कर दूँगी, तुम जाओ..." वो बोली और मेरी चड्डी उठाकर साबुन लगाने लगी..

मैंने देखा कि चड्डी में वीर्य के दाग साफ़ चमक रहे थे पर मौसी तो सब जानती थी इसलिए वो मुझसे बिना कुछ पूछे उन दागों को रगड़ने लगी।

मेरा लण्ड फिर झटके लेने लगा था... पर तभी काम वाली आ गई थी इसलिए अब तो मुझे बेचैनी से रात का इंतज़ार था जब मौसी जी मेरे पास लेटने वाली थी !

दोपहर में मम्मी पर आ गई इसलिए मैंने अपने एक दोस्त के घर जाकर ब्लू फिल्म देखी, शाम को खाना खाकर जैसे ही सब सोने के लिए ऊपर छत पर गए तो मैंने थोड़ी देर के लिए किताब खोली पर मन कहीं ओर था इसलिए जल्दी ही किताब एक ओर रख कर मैंने लाईट बुझा दी और लण्ड हाथ में पकड़ कर मैं लेट कर मौसी के आने का इन्तज़ार करने लगा।

मैंने वैसलीन की शीशी पहले से सिरहाने रख ली थी, मुझे पूरा विश्वास था कि आज मेरे मूसल जैसे लण्ड को देखने के बाद मौसी की चूत में खुजली जरूर हो रही होगी।

ऊपर मौसी की बातें करने और हंसने की आवाजें आ रही थी, मैं बेचैन सा करवटें बदल रहा था।

करीब एक घंटे के बाद मैंने किसी के छत से उतरने की आवाज सुनी। मेरे कमरे का दरवाजा खुला, मौसी ही थी !

उन्होंने कमरे की बत्ती जलाई, एक नज़र मुझे देखा और मुस्कुराई।

मैंने आँखें बंद किये हुए चोरी से देखा, वो गुलाबी मैक्सी में थी, उनके बड़े बड़े चूतड़ और मस्त बड़ी बड़ी चूचियाँ साफ़ चमक रही थी।

मेरे लण्ड ने झटके लेने शुरू कर दिये, मौसी ने लाइट बुझाई और बाथरूम में घुस गई। उनके मूतने की आवाज रात के सन्नाटे में कमरे में साफ़ सुनाई दी। मन तो किया बाथरूम में मूतते हुए पकड़ कर उनको अध-मूता ही चोदना शुरू कर दूँ या उनके नमकीन मूत से तर बुर को भीतर तक जबान डाल कर चाटूँ।

लेकिन चुदने से पहले औरत खुल कर मूत ले तो अच्छा रहता है।

मौसी मूत कर मेरे बिस्तर पर आकर मेरे ही पास लेट गई, मेरा दिल जोर जोर से धडकने लगा। मैंने अपने फड़कते हुए टन्नाये लण्ड को अपनी दोनों टांगों के बीच दबा लिया। मैं चाहता था कि शुरुआत मौसी की तरफ से हो।

दो मिनट बीते थे कि मैंने अपने सीने पर मौसी जी का हाथ रेंगते हुए महसूस किया। वो मेरे सीने में आ रहे हल्के-हल्के बालों सो सहलाते हुए अपना हाथ मेरे लण्ड की तरफ ले जाने लगी, मैं समझ गया कि मेरे लण्ड का जादू इन पर चल गया है लेकिन मैं अपने खड़े लण्ड को उनको अभी पकड़ाना नहीं चाहता था इसलिए मैं उनकी तरफ पीठ करके घूम कर लेट गया मैं ने फ्रेंची और कट वाली बनियान पहन रखी थी।

मौसी ने भी मेरी तरफ करवट लेकर अपनी मैक्सी पेट तक उठा कर अपनी फूली हुई दहकती चूत को मेरे पिछवाड़े से सटा दिया वो मेरे चूतड़ों को सहलाते हुए हल्के से कराह रही थी।

उन्होंने दूसरे हाथ से मेरा चेहरा अपनी ओर घुमाया और मेरे होंठों पर चुम्बन करने लगी। मेर लिए अब बर्दाश्त करना असंभव था, मैंने उनकी और करवट बदली अब मैं और वो आमने-सामने थे।

उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर अपनी चूचियों को मलना शुरू किया और मेरे होंठ अपने होंठों में ले लिए।

मैंने बिना देर किए उनकी चूचियों को मैक्सी के ऊपर से हौले हौले मसलना शुरू कर दिया और उनके होंठों को भी चूसने लगा।

मौसी तो जैसे मस्ती में मदहोश थी, मेरे चूची दबाने से मिलने वाले सुख में वो इतना डूबीं थी कि वो भूल गईं कि मैं जाग रहा हूँ।

उनके होंठ चूसते हुए मैंने अपना दूसरा हाथ उनकी गर्म चूत पर रख दिया, ऐसा लगा जैसे हाथ को किसी हीटर पर रख दिया हो !

मौसी मीठा सा कराह रही थी, उनकी मदहोशी का फायदा उठाते हुए मैंने एक उंगली उनकी चूत में घुसेड़ दी।

मौसी को अब करेंट लगा था, चौंक कर उन्होंने मेरा हाथ पकड़ लिया- मुन्ना... ओ.. ओ मुन्ना...? वो फ़ुसफुसाई।

मैंने उनकी चूचियों को कसकर मसल दिया और होंठों को अपने होंठों में लेकर कस कर चूसा। मौसी के मुँह से एक सीत्कार निकली।

"नहीं... बस... और कुछ मत बोलो मेरी जान !" मैंने उनके कान में कहा।

उनको मुझसे ऐसे जवाब की उम्मीद नहीं थी पर उनको उत्तेज़क जवाब अच्छा जरूर लगा- माही... मैं हूँ मौसी...

"हाँ ! पर दिन के उजाले में... रात को अब तुम सिर्फ मेरा माल हो... मेरी जान..! कल रात तुमने मुझे अपना गुलाम जो बनाया है...!"

"तो क्या कल रात तुम?"... वो चौंक पड़ी।

"हाँ, मैं जाग रहा था और तड़पता रहा सारी रात ! पर अब नहीं... !" कह कर मैं मौसी के ऊपर आ गया और एक झटके में उनकी मैक्सी को पूरा ऊपर करते हुए उनकी गोल-गोल चूचियों को कस कर पकड़ कर जो मसलना शुरू किया तो मौसी ना नहीं कर पाई- "हाय धीरे माही... तुम नहीं जानते मैं कितना अकेली हूँ ! इसीलिए मैं कंट्रोल नहीं कर पाई और तुमको...!"

"अरे नहीं, आपने बिल्कुल सही नंबर डायल किया है, किसी को पता भी नहीं चलेगा और आपकी पूरी सेवा भी...!"

"बस अब बातें नहीं... प्यार... बहुत प्यार चाहिए मुझे ! मैं बहुत प्यासी हूँ...!" कह कर उन्होंने मेरे होंठ अपने होंठों में लेकर चूसना शुरू कर दिया।

काम का ज्वर दोनों के जिस्मों पर हावी था मेरे कसरती बाजुओं ने मौसी को कसकर जकड़ लिया, उनकी दोनों चूचियाँ मेरे कठोर सीने में पिस रही थी, उन्हें दर्द हो रहा था पर वो काम ज्वर का दर्द था।

मौसी के मुँह में मैंने अपनी जीभ डाल दी, उन्होंने मेरी जीभ को खूब चूसा। मैंने अपनी जीभ से उनके मुँह का आकार टटोल डाला। वो लगातार तड़प रही थी। मैं अब चूचियों से नीचे आकर उनकी टांगों के बीच में घुटनों के बल बैठ गया और अपना मुँह उनकी लहराती चूत पर रख दिया।

मौसी इसके लिए तैयार नहीं थी, वो सिसक उठीं और नीचे से कमर उठाते हुए अपनी महकती चूत मेरे मुँह से चिपका दी।

उनकी चूत पानी से तर थी खुश्बूदार नमकीन पानी का स्रोत सामने हो और कामरस झर रहा हो तो कौन प्यासा रहना चाहेगा, मैंने अपने हाथ उनकी चूचियों पर फिट कर दिए और उन्हें दबाते हुए अपनी लपलपाती जीभ से उनकी बुर की दोनों फांकों को अलग कर दिया।

मौसी हाय कर उठी, मेरे बालों को पकड़ कर अपनी चूत उठाकर उन्होंने मेरे मुँह में दे दी। मैंने पूरी जीभ नुकीली करके उनकी बुर में जितना अन्दर डाल सकता था, डाल दी। अन्दर कामरस का भण्डार था, सब मैंने अपनी जीब से लपर-लपर चाट लिया। बरसों से रुका दरिया था, शायद मेरी नाक तक कामरस से तर हो रही थी।

मौसी चूत उठा-उठा कर मेरे मुँह पर मार रही थी, वे चूतड़ उठा-उठा कर पूरी ताकत से ऐसा कर रही थी, वो चाहती थी कि उनकी चूत से निकलने वाली एक एक बूँद मैं पी लूँ। मैं भी बचपन का प्यासा था तो मजा दोनों को ख़ूब मिल रहा था।

अचानक मैंने मौसी की चूत का ऊपरी हिस्सा चुटकी से दबा कर चूत का छेद और छोटा कर दिया फिर दोनों होंठों से चूत के नीचे का पूरा हिस्सा होंठों से भर कर ऐसा खींचा जैसे कोई बच्चा आम मुँह में लगा कर चूसता हो।

मौसी पागल हो उठी, बहुत थोड़ी सी खुली चूत के रास्ते उनका कामरस आम के रस के जैसा खिंचकर मेरे मुँह में क्या आया, मौसी गनगना उठी और उन्होंने अपनी टांगों से मेरे सर को कस लिया और बोली- .... हाय राजा ! यह सब कहाँ से सीख लिया? मैं पागल हो जाऊँगी ! अब तो बस चोद मुझे... आज फाड़कर ही हटना मर्द है तो !

मैंने बिना देर किये अपने लण्ड से उनकी चूत को निशाना बनाया जिसे मैंने चूस चूस कर लाल कर दिया था। बुर पर मोटा लाल सुपारा फनफना रहा था। मैंने बुर की दोनों फंकों के बीच ढेर सारा थूक दिया और फिर लाल सुपारे को जोरदार धक्का लगाया। लण्ड दो इंच अन्दर धंस कर रुका।

मौसी काफी दिनों से चुदी नहीं थी तो उनकी चूत नई लौंडिया के जैसी कसी थी, चूत के दोनों पाटों ने लण्ड के वार को रोकने की असफल कोशिश की- आअऽऽ ...हा ऽऽ ... आ ..ऽऽऽ करके रह गई पर अगले धक्के में लण्ड ने चूत की जड़ को छू लिया।

मौसी की दबी सी चीख निकल गई- अ आ आ...

वो धनुष बन गई। दोनों टांगें मेरे सीने के पीछे से ले जाकर वो मुझे लपेटे थी, उनकी आँखें वासना के ज्वर से बंद हो गईं थी, उनकी नाजुक कमर मेरी मजबूत बाजुओं में जकड़ी हुई थी। वो अपनी गाण्ड उठा-उठा कर लण्ड अन्दर लेने की कोशिश कर रही थी।

पूरा लण्ड बाहर तक खींच कर मैंने एक जोर का धक्का मारा और मौसी आआ..हा कर उठी।

मेरे मखमली बिस्तर पर घमासान मचा हुआ था। मौसी को मैंने कमर से ऐसे जकड़ रखा था जैसे अजगर अपना शिकार पकड़ता है। धधकते लाल लण्ड के सुपारे ने चूत का मुँह फाड़ दिया था।

मौसी छटपटा उठी थी पर सेक्स का मंत्र है कि चोदते समय चूत पर कोई रहम नहीं करना चाहिए, सो मैंने अपनी चड्डी जिससे मौसी की गीली चूत को कई बार पौंछा था को उठा कर मौसी के मुँह में ठूंस दिया और सुपारे को पूरा चूत के मुँह तक खींच खींच कर गिनते हुए चालीस शाट मारे।

मौसी गूं... गूं ...करती रही पर चुदती रही। चूतड़ों की लय बता रही थी कि उनको मस्ती आ रही थी। चूत चालीसा पूरा होते होते मौसी का पानी छूट गया, उनकी आँखें जो बड़ी बड़ी फ़ैली हुई थीं अब खुमारी से बंद हो गई थी। मैं भी पक्का था इसलिए झड़ने से पहले लण्ड को रोक कर बाहर निकाल लिया।

"आःह ....और चोद मेरे राजा... भोसड़ा बनने तक रुक मत.... उस्सीह ....आअ...अह्हा..." वो मुँह खुलते ही बोली।

"मेरी जान, सब्र तो करो....!" मैं बोला- अगर मेरी चोदी मादा सुबह लंगडा कर ना चले तो मेरा मर्द होना बेकार समझता हूँ मैं ! ....फिर आपकी तो मूतने की आवाज ही बदल दूंगा मैं सुबह तक !" उनकी टांगों को अपने दोनों हाथों से पूरा चीरता हुआ मैं बोला।

वो फिर गनगना उठी, उनकी दोनों टांगों को ऊपर ले जाकर उनके घुटनों को उनकी चूचियों से लगा दिया उनकी टपकती चूत और गाण्ड बिल्कुल मेरे सामने खुले मैदान की तरह हो गई।

आह्हा... क्या करेगा ...????? वो कराह उठी।

"तुमको पीना है....पर नीचे से.... ! मैं उनके कान में फुसफुसाया और ताजी चुदी गर्म चूत को अपने दोनों होंठों में भर लिया।

"हाय माँ...लुट गई मैं !" वो कराह उठी।

"चुप मादरचोद.... ! अभी तो तुझे सारी रात लुटना है.... ! कल से तू अपने को सोलह साल की समझेगी...ऐसा कर दूंगा तुझको... !"

मौसी और उत्तेजित हो उठी- ले साले...पी जा मेरी !

कमर उठा कर अपने हाथों से मेरा सर पकड़ कर चूत में घुसेड़ दिया।

नाक तक चूत में धंस गई मेरी। मैंने उनके रसभरे फूल को होंठों से दबा लिया, वो तड़पने लगी।

"अरे, अब जल्दी चूस चाट के चोद दे अपने पानी से मुझे सींच दे .... रा...जा..." वो नागिन सी कमर लहरा रही थी और मैं कमर को जकड़े घुटनों के बल बैठा चूत में मुँह डाले नमकीन पानी चाटता जा रहा था। मदहोश करने वाली चूत की महक मेरे नथुनों में घुस कर मेरे लण्ड तक पहुँच रही थी।

करीब पांच मिनट तक चूत का रस चूसने के बाद मैंने उनकी

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